शख़्सियत परस्ती     उम्मत के लिए तबाहकुन है ۔अलहाज नौशाद रज़ा अज़हरी।
 

मदरसा गुलशन ए बरकात निस्वा में  इसलाहे माशर के जलसा से खिताब करते हुए ताजुश्शरिया एजुकेशनल सोसाइटी कानपुर के सदर मौलाना अलहाज नौशाद रजा खान ने कहा

सहाबा-एे-कराम शख़्सियत परस्त नही थे। तभी दुनिया का सबसे बड़ा हुक्मरान, जिसके नाम से लोगों में कपकपी तारी हो जाया करती थी, जब जनता दरबार में खड़ा होकर पूछता है कि लोगो अगर मैं हक़ ओ इंसाफ पे न चलूँ तो तुम क्या करोगे? लोगों की भीड़ से एक बद्दू (दिहाती ) खड़ा होता, जिसने अपनी तलवार खजूरों के पत्तों में लपेट रखा था (क्योंकि उसके पास तलवार की म्यान नही थी), तलवार पे हाथ मार कर कहता है ---

"उमर हम तुम्हे इस तलवार से सीधा कर देंगे"।

उमर खामोश हो जाते हैं। सारे मजमे में सन्नाटा छा जाता है। फिर उमर कहते---

"अब उमर बर्बाद नही होगा"।

एक दिन उमर के पास शिकायत आती है कि लड़की वाले 'मेहर' की क़ीमत ज़्यादा मांगने लगे हैं। उमर मस्जिद से एलान करते हैं कि आज के बाद हुकूमत के द्वारा तय किये मेहर से ज़्यादा कोई लड़की वाला डिमांड नही करेगा। और जब इस एलान के बाद उमर मस्जिद से निकलते है तो एक औरत रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती है और तैश में बोलती है---

--- "ऐ उमर, तुम कौन होते मेहर की हद तय करने वाले, जबकि क़ुरान ने इसकी हद तय नही करी।"

उमर फौरन वापस मस्जिद जाते हैं और अपना फैसला वापस लेने का ऐलान करते है और कहते हैं कि जब तक मुसलमानों में ऐसी औरतें मौजूद हैं, मदरसा गुलशन ए बरकात के प्रबंधक हज़रत मौलाना नौशाद रज़ा अज़हरी ने आगे कहा 

 ये उमर कौन हैं? जिनके बारे में अल्लाह के रसूल स0आ0 ने फरमाया के जिस रास्ते से उमर गुज़रता है शैतान वो रास्ता छोड़ देता है। जिसके बारे में नबी आ0स0 ने फरमाया, "अगर मेरे बाद कोई नबी होता तो उमर होता।" जिसके बारे रसूलल्लाह स0आ0 ने फरमाया कि हर क़ौम का एक मोहद्दस (जिसपे वही तो नही आती मगर अल्लाह की तरफ़ से उसे सीधा इलहाम होता है) और मेरी उम्मत का मोहद्दस उमर है। वो उमर जिसके कई फैसले पे लोग एतेराज़ करने लगे तो क़ुरान में उस फैसले की ताईद में आयतें उत्तर गईं। लेकिन इसके बाद भी मुसलमानों का अदना से अदना शख़्श भी भक्ति नही करता। ये नही कहता कि उमर ने कह दिया तो कोई न कोई मसलेहत होगी --- उमर इल्म वाला है --- उमर अमीरऊल मोमेनीन है --- उमर अशरे मोबश्शेरा वाला है --- उमर वो है जिससे अल्लाह ने रज़ामंदी का एलान कर रखा है।

 *क्योंकि सहाबा शख़्सियत परस्त नही थे। सहाबा के नज़दीक दीन और उम्मत पहले थे शख़्स और तंज़ीम बाद में। आखिर में सलातो सलाम पर जलसा खत्म हुआ इस मौके पर मौलाना नूर मोहम्मद रिज़वी कारी रिज़वान अहमद मौजूद रहे